दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है ये इससे जुड़ी एक रोचक जानकारी
रायपुर। अभी तक आपने ने सुना होगा कि मध्य प्रदेश के भोजपुर में स्थित भोजेश्वर महादेव के मंदिर का शिवलिंग दुनिया में सबसे बड़ा है। पर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के घने जंगलों में ये शिवलिंग है जो ऊंचाई में तो भोजेश्वर महादेव मंदिर के शिवलिंग के समान है पर व्यास इससे कहीं ज्यादा है। पर इस शिवलिंग से जुड़ी एक बात झूठी है। जानिए इस शिवलिंग के बारे में...
लगातार बढ़ने वाली बात अफवाह ने जब पड़ताल की तो पता चला कि शिवलिंग के हर साल 6 इंच बढ़ने की बात महज अफवाह है। ऐसा कहा जाता है कि स्थानीय प्रशासन इसे हर साल नपवाता है और शिवलिंग की लंबाई बढ़ी हुई मिलती है। वहीं जब पता किया तो पता चला कि शिवलिंग की लंबाई का पिछले कई सालों का कोई रिकॉर्ड नहीं है। हर साल नपवाने और बढ़ने की बात से कइयों ने इंकार भी किया। यहां तक कि स्थानीय अधिकारियों को ये भी पता नहीं है कि लंबाई नपवाने का काम कौन करता है। गरियाबंद की कलेक्टर श्रुति सिंह ने बताया कि हर साल लंबाई बढ़ने की बात सुनी तो है पर इसे नपवाने की जिम्मेदारी शायद पर्यटन विभाग की होगी। पता करना पड़ेगा। इधर जब पर्यटन और ऑर्कियोलॉजी विभाग के अधिकरी भी हर साल शिवलिंग की लंबाई नापने जैसी बात से इंकार कर रहे हैं।शेर के दहाड़ने की आती है आवाज इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि कई साल पहले जमींदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभा सिंह जमींदार की यहां पर खेती-बाड़ी थी।शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत मे घूमने जाते थे तो उन्हें एक टीले से सांड़ के हुंकारने (चिल्लाने) एवं शेर के दहाड़ने की आवाज सुनाई पड़ती थी।शुरू में उन्हें लगा कि ये उनका वहम है,लेकिन कई बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभा सिंह ने ग्रामवासियों को इस बारे में बताया। ग्रामवासियों ने भी टीले के पास कई बार आवाज सुनी थी। इसके बाद सभी ने आसपास सांड़ अथवा शेर की तलाश की, लेकिन दूर-दूर तक कोई जानवर नहीं मिला। तब लोगों ने माना कि इसी टीले से आवाज आती है और टीले को भकुर्रा/भकुरा (हुंकारने की आवाज) कहने लगे।
12 ज्योतिर्लिंगों की तरह इसे भी अर्धनारीश्वर शिवलिंग होने की मान्यता प्राप्त है। इस शिवलिंग का दर्शन करने और जलाभिषेक करने हर साल सैकड़ों की संख्या में कांवड़िए पैदल यात्रा कर यहां पहुंचते हैं। यहां आने वाले भक्तों की संख्या में हर साल इजाफा हो रहा है प्रकृति प्रदत्त जलहरी भी पारागांव के लोग ऐसा मानते हैं कि पहले यह टीला छोटे रूप में था पर धीरे-धीरे इसकी उंचाई व गोलाई बढ़ती गई। इसका बढ़ना आज भी जारी है। लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में पूजने लगे। इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत्त जलहरी भी दिखाई देती है,जो धीरे-धीरे जमीन के ऊपर आती जा रही है। धार्मिक पत्रिका कल्याण ने बताया सबसे विशाल इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक में उल्लेखित है,जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा विशाल शिवलिंग बताया गया है।
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