यह होती है शिव जी के इस अंग का पूजा जानकर आप हैरान हो सकते हैं
राजस्थान का माउंट आबू
मात्र एक पर्यटन स्थल ही नहीं है यहां धर्म और संस्कृति के सदियों पुराने प्रमाण
मिले हैं इस स्थान पर हिंदू धर्म के अतिप्राचीन मंदिर हैं अगर आप कभी माउंट आबू
जाएं तो यहां के अचलेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन जरूर करें यह मंदिर भगवान शिव के अन्य
मंदिरों से अलग है इस मंदिर में भगवान शिव के पांव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की
जाती है इस मंदिर की कथा और मान्यता बहुत रोचक हैं श्रद्धालु बताते हैं कि प्राचीन
काल में यहां विराट ब्रह्म नामक एक गहरी खाई हुआ करती थी उसके निकट ही वशिष्ठ मुनि
भगवान की तपस्या करते थे उनकी गौ माता में बहुत श्रद्धा थी उनकी गाय का नाम था
कामधेनु एक बार की बात है
कामधेनु चरते हुए खाई में गिर गई वशिष्ठ से कामधेनु का यह दुख देखा नहीं गया
उन्होंने अपनी तपस्या के बल से गंगा आदि पवित्र नदियों का आह्वान किया वे नदियां
प्रकट हुईं और उनके जल से खाई भर गई इस प्रकार कामधेनु खाई से बाहर निकली इसके बाद
नंदी वद्रधन खाई में उतरा उसका मुख गहरी खाई में समा गया तो वशिष्ठ ने शिवजी से
प्रार्थना की कि वे अपने दाएं पांव के अंगूठे से नंदी वद्रधन को शक्ति प्रदान करें
शिव ने वशिष्ठ का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया माना जाता है कि शिव के उसी अंगूठे
का निशान आज तक यहां है और अचलेश्वर महादेव मंदिर में उसी निशान की पूजा की जाती
है परंतु यह उस समस्या का स्थाई समाधान नहीं था
एक दिन कामधेनु दोबारा
खाई में गिर गई तब वशिष्ठ मुनि की प्रार्थना पर हिमालय ने अपने बेटे नंदी वद्रधन
को यह जिम्मेदारी सौंपी कि खाई को पाट दे हालांकि उसके लिए वद्रधन ने आशीर्वाद
मांगा कि खाई पर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए साथ ही पहाड़ का नामकरण भी उसके
नाम पर किया जाए मुनि वशिष्ठ ने यह आशीर्वाद दे दिया विशेष रूप से श्रावण मास में
यहां काफी तादाद में श्रद्धालु आते हैं और भगवान भोलेनाथ का पूजन करते हैं अंगूठे
के निशान पर जल चढ़ाया जाता है मंदिर से जुड़ी यह भी मान्यता है जो यहां आकर भगवान
का पूजन करता है उसे संसार के कष्ट नहीं हिला सकते इस स्थान की एक और रोचक मान्यता
है कहते हैं कि जिस दिन अंगूठे का यह निशान मिट जाएगा उसी दिन माउंट आबू के ये
पहाड़ खत्म हो जाएंगे
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